Kokilaben Dhirubhai Ambani hospital gives new lease of life to a 13year old Iraqui girl, bedridden from last 8 years
8 साल बाद चली 'जाहरा'
(13 साल की इराकी लड़की का मुंबई के अंबानी अस्पताल
में हुआ सफल इलाज)
मुंबई, 18 सितंबर, 2015: कोकिलाबेन धीरूभाई अम्बानी हॉस्पिटल ने दुर्लभ जेनेटिक डिसऑर्डर से जूझ रही एक 13 वर्षीय इराकी लड़की का सफल इलाज करके एक और बड़ी उपलब्धि हासिल की है. ऑस्टियोजेनेसिस इम्पर्फेक्टा (ओआई) नामक हड्डियों का यह जेनेटिक डिसऑर्डर 20 से 50 हजार बच्चों में किसी एक को होता है. यह शरीर द्वारा हड्डियों को मजबूत बनाने की क्षमता को प्रभावित करता है. इस दुर्लभ डिसऑर्डर की वजह कोलाजेन के निर्माण में होने वाली जेनेटिक खराबी होती है. कोलाजेन शरीर के संयोजक ऊतकों का प्रमुख प्रोटीन है. यह हड्डियों तथा अन्य शारीरिक संरचनाओं को संभालने वाले मुख्य ढांचे का निर्माण करता है. कोलाजेन में उत्पन्न जेनेटिक खराबी का परिणाम यह होता है कि हड्डियां अत्यंत भंगुर हो जाती हैं और आसानी से चटकने लगती हैं.
कोकिलाबेन धीरूभाई अम्बानी हॉस्पिटल के डॉ. एलैरिक आरूजिस (एमबीबीएस, डी’ऑर्थोपेडिक्स, एमएस, ऑर्थोपेडिक्स,डीएनबी, ऑर्थोपेडिक्स) 'पीडियाट्रिक ऑर्थोपेडिक सर्जन’ ने बताया, “ऑस्टियोजेनेसिस इम्पर्फेक्टा का मतलब ही है- ऐसी हड्डियां,जिनके निर्माण में जन्म से ही त्रुटि है. यह अशक्त और पंगु कर देने वाला ऐसा डिसऑर्डर है जिसमें बार-बार हड्डियां टूटने का दुष्चक्र जारी रहता है. इससे हड्डियों में गंभीर विकृतियां उत्पन्न होती जाती हैं, जिसके परिणामस्वरूप बच्चों में हड्डियां टूटने का सिलसिला और तेज हो जाता है. मांसपेशियों की कमजोरी के साथ-साथ हड्डियों में आहिस्ता-आहिस्ता टेढ़ापन होते जाने के कारण प्रभावित बच्चे अपनी टांगों पर भार उठा ही नहीं सकते. आखिरकार इन्हें बिस्तर पकड़ लेना पड़ता है और वे घर में कैद होकर रह जाते हैं.”
मरीज जाहरा थानी 13 साल की एक जिंदादिल और हंसमुख इराकी बच्ची है, जो अपनी उम्र के दूसरे किशोरों की ही तरह नाचना-गाना और खेलना-कूदना पसंद करती है. लेकिन पिछले 8 सालों से वह घर की चारदीवारी में ही सिमट कर रह गई थी और खड़ा हो पाने या चलने में पूरी तरह असमर्थ थी. जाहरा को ऑस्टियोजेनेसिस इम्पर्फेक्टा (ओआई) अथवा ‘भंगुर हड्डियों की बीमारी’ है, जो एक जेनेटिक बोन डिसऑर्डर है. इसमें हड्डियां बहुत कमजोर हो जाती हैं जिसके चलते वे बार-बार चटकती रहती हैं.
जाहरा की यह बीमारी उसके जन्म के समय पता नहीं चल पाई थी. दो साल की उम्र तक उसका शारीरिक विकास सामान्य था. लेकिन तभी एक मामूली चोट लगने से उसकी हड्डी टूट गई. इसके बाद हर साल जब 2-3 बार हड्डियां टूटने का सिलसिला शुरू हुआ तो उसके माता-पिता की चिंता बढ़ गई. जाहरा की हड्डियां मामूली चोट से ही टूट जाया करती थीं.
विस्तृत सलाह-मशविरा और जांच-पड़ताल के बाद उसके देश के डॉक्टरों का एक पैनल इस नतीजे पर पहुंचा कि जाहरा कोऑस्टियोजेनेसिस इम्पर्फेक्टा नामक गंभीर बोन डिसऑर्डर हुआ है. बार-बार हड्डियां टूटने के कारण चार साल की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते उसकी दोनों टांगों में बहुत टेढ़ापन आ गया था. इसे ठीक करने के लिए इराक में उसकी दो सर्जरी हुईं. दुर्भाग्य से ये दोनों सर्जरी सफल नहीं रहीं और जाहरा को 5 साल की उम्र में ही बिस्तर पकड़ लेना पड़ा. वह घर से बाहर नहीं निकल सकती थी. भाई-बहनों तथा माता-पिता की मदद से वह अपने रोजमर्रा के कामकाज घर में लगभग घिसटते हुए निबटाती थी. हड्डियों की बेहद कमजोरी के कारण वह अपनी उम्र के दूसरे बच्चों की तरह स्कूल जाने में असमर्थ थी. नतीजा यह हुआ कि उसे अपने बड़े भाई-बहनों की मदद लेकर घर पर ही लिखाई-पढ़ाई सीखनी पड़ी.
जाहरा के बेहतर इलाज के लिए उसके माता-पिता ने कोकिलाबेन धीरूभाई अम्बानी हॉस्पिटल के ऑर्थोपेडिक डिपार्टमेंट से संपर्क साधा और पीडियाट्रिक ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ. एलैरिक आरूजिस से परामर्श किया. उन्हें यह कदम इसलिए उठाना पड़ा कि इराक के डॉक्टरों के पास न तो इस डिसऑर्डर को ठीक करने की विशेषज्ञता थी और न ही उनके पास जरूरी सुविधाएं उपलब्ध थीं. जाहरा की दास्तान सुनने के बाद डॉ. आरूजिस इस चुनौती भरे मामले को हाथ में लेने के लिए तैयार हो गए.
जाहरा के इलाज के बारे में कोकिलाबेन हॉस्पिटल के डॉ. आरूजिस जानकारी देते हैं, “जेनेटिक डिसऑर्डर होने के चलते यह बीमारी अपने आपमें लाइलाज है. लेकिन कुछ ऐसी उपचार पद्धतियां मौजूद हैं जिनके जरिए हड्डियों को दोबारा मजबूत बनाया जा सकता है और जीवन-स्तर सुधारा जा सकता है. इस अवस्था के उपचार हेतु एक आधुनिक तरीका विकसित हुआ है. यह तरीका है बाइस्फोस्फोनेट्स नामक विशेष दर्जे की दवाओं का इस्तेमाल, जो इन भुरभुरी हड्डियों को मजबूती प्रदान करने में मददगार होती हैं. दूसरा इलाज है सर्जरी वाला. इसमें टेढ़ापन दूर करने के लिए हड्डी को कई जगह से काटकर टुकड़ों को धातु की एक छड़ पर बांध दिया जाता है. इस सर्जरी को‘सीक-कबाब ऑपरेशन’ के नाम से भी जाना जाता है.”
डॉ. एलैरिक आरूजिस ने इस तकनीक का ऑपरेशन करना यूएसए के विश्वस्तरीय केंद्रों पर सीखा है. यह सर्जरी एक जटिल ऑपरेशन होती है जिसे सुरक्षित ढंग से सम्पन्न करने के लिए ऊंचे स्तर की विशेषज्ञता चाहिए. हड्डियां इतनी कमजोर होती हैं कि अगर सावधानी से न संभाली जाएं तो बिखर भी सकती हैं. सर्जरी वाली हड्डी को कई टुकड़ों में काटना पड़ता है और फिर उसे धातु की छड़ पर होशियारी से बांधना पड़ता है. वह भी इस सावधानी से कि हड्डी की बुनियादी बनावट को कोई नुकसान न पहुंचे और खून की आवाजाही में कोई बाधा न होने पाए.
जाहरा के मामले में तो यह जटिलता और भी बढ़ गई थी क्योंकि उसकी हड्डियां लगभग धनुषाकार हो चली थीं और उनकी लंबाई तथा व्यास 5 साल के बच्चे की हड्डियों जितना था. मेडिकल टीम ने जाहरा की हड्डियों के लिए विशेष तौर पर बनाई गई छड़ का इस्तेमाल किया. इस तरह की छ्ड़ों का निर्माण भारत में हाल ही में शुरू हुआ है. यह फैजियर-डुवल टेलेस्कोपिंग छ्ड़ विशेष रूप से निर्मित की जाती है जिसमें एक दूसरे पर खिसकने वाली दो बाहें होती हैं. छड़ के दोनों सिरे हड्डियों के विकसित होने वाले सिरों से कस दिए जाते हैं और जैसे-जैसे बच्चा बढ़ता है ये दोनों सिरे हड्डियां बढ़ने देने के लिए एक दूसरे में समाते जाते हैं. यह तकनीक भुरभुरी हड्डियों को मजबूती देने के लिए आंतरिक सहारा देती है तथा हड्डियों का विकास होने के साथ बार-बार छ्ड़ बदलने की जरूरत भी नहीं पड़ती.
जाहरा की दायीं टांग की सर्जरी इसी साल 20 जून को की गई थी और इसके 2 सप्ताह बाद उसकी बायीं टांग की सर्जरी हुई. प्लास्टर चढ़ाकर उसकी दोनों टांगों को 2 महीने के लिए स्थिर कर दिया गया था ताकि हड्डियां जुड़ सकें. इसके बाद उसे ब्रैसेज और वाकर की मदद से खड़ा किया जाने लगा. उसकी हड्डियां पूरी तरह सीधी हो चुकी हैं और आज 8 साल बाद वह पहली बार खड़ी होने और चलने में सक्षम हो पाई है.
जाहरा ने रोमांचित होकर बताया, “आज 8 साल बाद पहली बार अपने पैरों पर चलने योग्य बन कर मैं बेहद खुश हूं. मैं इराक जाकर अपने दोस्तों के साथ खेलना चाहती हूं और जल्द से जल्द स्कूल जाना चाहती हूं.”
डॉ. आरूजिस ने अपनी बात समाप्त करते हुए कहा, “उसकी हालत में सुधार देख कर हमें खुशी मिल रही है. अब उसकी हड्डियों को और मजबूत करने के लिए नसों के माध्यम से उसे साल में दो बार दवाएं देने की जरूरत पड़ेगी. बार-बार हड्डी टूटने के कारण उसकी दायीं टांग छोटी हो गई है. इसे ठीक करने के लिए आगे चलकर उसकी लिम्ब लेंथनिंग सर्जरी भी करनी होगी. हालांकि यह देख कर संतोष भरा आश्चर्य होता है कि सालों तक बिस्तर में पड़े रहने वाले ये बच्चे एक बार जब अपने पैरों पर फिर से खड़े होने और चलने के काबिल हो जाते हैं तब उनके अंदर कितने गजब का विश्वास पैदा होता है. यह जीवन बदल कर रख देने वाली सर्जरी है; न सिर्फ प्रभावित बच्चे के लिए बल्कि पूरे परिवार के लिए. ऐसी सर्जरी सिर्फ त्रि-स्तरीय सुविधाओं वाली सर्व साधन संपन्न कोकिलाबेन हॉस्पिटल में ही संभव है, जहां मरीजों को हड्डियों के जटिल डिसऑर्डर ठीक करने के लिए आधुनिकतम तकनीक एवं विशेषज्ञता उपलब्ध है. इसके साथ-साथ बच्चे की 360 डिग्री देखभाल करने के लिए हॉस्पिटल में पीडियाट्रिक ऑर्थोपेडिक्स तथा पीडियाट्रिक रिहैबिलिटेशन की बहुआयामी टीम हमेशा तैनात रहती है.”
प्रिंसेस जाहरा हॉस्पिटल में एक नन्हीं सेलेब्रिटी की तरह हो गई है. अपना स्वास्थ्य दोबारा हासिल करने के लिए यहां उसने 3 महीने बिताए हैं. अब वह इराक लौटना चाहती है, अपने घर में आजाद पंछी की तरह उड़ना चाहती है, पढ़ाई शुरू करना चाहती है और किसी भी टीनएजर की भांति अपनी जिंदगी जीना चाहती है.
Can muscular dystrophy be treated??
ReplyDelete